आंदोलनकारी या आंदोलनजीवि ??
राष्ट्रवाद की भावना देश के हर नागरिक
में होनी बहुत जरूरी है ।परंतु काफी बार ऐसा हो नही पाता है । जब देश की सबसे
पुरानी पार्टी कांग्रेस विश्व की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के द्वारा देश हित मे लिए
गए फैसलों का विरोध करती है तो हमेशा अपने आप को वो देश विरोधी ताकतों के साथ खड़ा
करके रख देती है ।
देश के किसानों के लिए मोदी सरकार
द्वारा बनाए गए नए कानूनो से जहाँ एक बड़ा किसानों का तबका खुश है वही कुछ आंदोलन
की मंशा और कुछ को उकसा कर इस बार फिर कांग्रेस और पंजाब की क्षेत्रीय पार्टी
अकाली दल ने अपने आप को फिर से आंदोलनकारी की जगह खालिस्तानी समर्थित आंदोलन में
खड़ा कर दिया है ।
मोदी जी ने राज्यसभा और लोकसभा में इन
देश विरोधी और देश के विकास में बाध्य आंदोलनकारी को आंदोलन जीवि करार दिया है ।
उनका सुबह उठने से लेकर सोने तक बस एक ही काम है ,देश का विकास न होने देना । देश
के गरीब मजदूर वर्ग किसान वर्ग आदिवासी वर्ग अन्य पिछड़े वर्गों का सर्वांगीण विकास
न हो सके ।
नए कानून बनने के बाद क्या किसी भी किसान
के पुराने हक को छीन लिया गया है? सब कुछ वैसा ही है। एक अतिरिक्त विकल्प की व्यवस्था
मिली है। फिर भी इन लोगो ने इस मुद्दे को भी उद्योग बना लिया है । दिल्ली की सड़कों
पर 26 जनवरी का उत्पात हो या लाल किले पर निशान साहिब का झंडा सब इस आंदोलन को किसान
का आंदोलन कम योगेंद्र यादव राकेश टिकैत जैसे आन्दोलनजीवियो का देश विरोधी गतिविधियां
हो गईं है ।
किसान के पवित्र आंदोलन को बदनाम करने का
काम आंदोलनकारियों ने नहीं, आंदोलनजीवियों ने किया है। इसलिए देश को आंदोलनकारियों
और आंदोलनजीवियों के बीच फर्क करना बहुत जरूरी है।
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