मुनव्वर राणा और उनकी विकृत मानसिकता

 यूँ तो मुनव्वर राणा जो शायराना अंदाज़ से बोलते है और लिखते है 

 " उस पेड़ से किसी को शिकायत न थी मगर

ये पेड़ सिर्फ़ बीच में आने से कट गया "

 

इन दो लाइन से उनको शायर मानने की भूल कतई न की जाए । उनकी सोच अपने धर्म के लिए ही है और इन दो लाइन में वो कहना चाहते है कि जो पेड़ कटा है वो फ़्रांस के लोग है जो उन आतंवादियों के धर्म के जिहाद में आड़े आ रहे थे । वो धर्म पर ही सब कुछ करना चाहते है । धर्म में उस आसमानी किताब में क्या लिखा है अभी तक कभी नही पढ़ा पर जिस तरह से इनकी सोच हो जाती है उसको पढ़कर अब तो लगता है कि उसको पढ़ने और पढ़ने वालों को रोकने के प्रयास होने चाहिए ।मुस्लिमों की सच्चाई यह है कि वह किसी भी देश की सीमा नहीं मानते हैं किसी भी देश की बात नहीं मानते हैं मुस्लिम सिर्फ मुस्लिम को मानते हैं अपनी  किताब के अनुसार चलते है पढा लिखा और मूर्ख सब एक बराबर है और ये कोई वर्तमान में नहीं हो रहा है इनका इतिहास देखोगे तो मालूम पड़ेगा सब जगह ऐसे ही भरे पड़े है...!! उनका धर्म उनका ईमान उनका मजहब है  । इनको देश से नही इनको शरीयत कानून अच्छा लगता है । बातों ही बातों में एक पढ़े लिखे आदमी जो खुद को शायर कहलवाने के लिए शायरी बोल देते है के मुँह से उनकी सोच और मानसिकता साफ निकल आयी । 

मुन्नवर राणा ने फ़्रांस के साथ हो रही इस्लामिक आतंकवाद वाली घटनाओं को जायज ठहराने के साथ साथ अपने इस्लाम धर्म को भी निचा दिखाया है । 

उनकी सोच और फ़्रांस के इस्लामिक आतंकवादियों की सोच में .0001 % का भी फर्क नही है । दोनों ही मारने के लिए तैयार बैठे है । इनकी सोच को ही जिहादन और धर्मोफोबिया कहते है जिनको खुद के धर्म के अलावा सब को मारना और 72 हूर की प्राप्ति को ही इस्लामिक धर्म का रास्ता मान लिया है । चार्ली हेब्दो ने जो मैगजीन कवर पर चित्र बनाया है जो कार्टून बनाया है वो इस्लामिक आतंकवाद को बताती और समझाती है कि कैसे एक सोच और धर्म ने दूसरो के जीने यरः रहने के तरीके पर प्रभाव डाला है  । और कुछ कट्टर मुस्लिम समुदाय के इस्लामिक आतंकवादियों ने चाकू से जिस प्रकार गले काटे है । जिस प्रकार से एक शिक्षक को मारा है । आज फ़्रांस इन इस्लामिक आतंकवाद की घटनाओं से पीड़ित है और मुन्नवर राणा जैसे दो कौड़ी की सोच वाले मुस्लिम समुदाय के लोगो ने इस तरह के आतंकवाद को जायज ठहराया है । हाल ही में घटित फ़्रांस की घटना के बाद एक तरफ भारत फ़्रांस के साथ आतंकवाद को ख़त्म करने के लिए खड़ा है वही भारत में कुछ लोग खुल के इनका समर्थन कर रहे है । मध्यप्रदेश के भोपाल में कांग्रेस के नेता द्वारा निकाली गई रैली हो या फिर मुन्नवर राणा का उनको समर्थन दर्शाता है कि कैसे कैसे लोग और कैसी उनकी सोच अपने धर्म को कमजोर कर रही है। जब पढ़े लिखे लोग कट्टर धर्म समर्थक हो सकते है तो अनपढ़ का तो क्या ही कहे ...! 

उनकी इस सोच को देखते हुए तो उनकी ही दो पंक्तियां को अपनी भाषा में कहूँगा 

 

किसी के हिस्से में धर्म आया,

किसी के धर्मोफोबिया आया

मैं घर में सबसे कट्टर था,

मेरे हिस्से जिहाद आया 

 

- इस्लामिक आतंकवाद की सोच वाला मुनव्वर राणा

 

 


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